Hindī kāvya para Āṅgla prabhāvaPadmajā Prakāśana, 1954 - 301 σελίδες |
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Αποτελέσματα 1 - 3 από τα 88.
Σελίδα 8
... थी और चारों ओर घोर अशान्ति और श्रव्यवस्था फैल रही थी । मुग़ल सम्राटों की अपनी प्रतिभा नष्ट हो चुकी थी और वे राज्य का संचालन अमीरों ...
... थी और चारों ओर घोर अशान्ति और श्रव्यवस्था फैल रही थी । मुग़ल सम्राटों की अपनी प्रतिभा नष्ट हो चुकी थी और वे राज्य का संचालन अमीरों ...
Σελίδα 9
... थी । कि मुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद हिन्दू राजाश्रों के अधीन राज्यों की उनका पारस्परिक विद्रोह इतना अधिक था भी वे परस्पर संगठित ...
... थी । कि मुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद हिन्दू राजाश्रों के अधीन राज्यों की उनका पारस्परिक विद्रोह इतना अधिक था भी वे परस्पर संगठित ...
Σελίδα 11
... थी और रूढ़िगति एवं परम्परागत विधियों को ही उसका असली स्वरूप मानने लगी थी । लोगों में अन्धविश्वास अधिक था और धर्म के नाम पर अनेक ...
... थी और रूढ़िगति एवं परम्परागत विधियों को ही उसका असली स्वरूप मानने लगी थी । लोगों में अन्धविश्वास अधिक था और धर्म के नाम पर अनेक ...
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अंग्रेजी अतिरिक्त अथवा अधिक अनेक अपनी अपने इन इस इस प्रकार इसके इसी ईश्वर उनकी उनके उन्होंने उसकी उसके उसे एवं और कर करता करते हैं कवि कविता में कवियों का कारण कार्य काल काव्य की काव्य में किन्तु किया किया है किसी कुछ के प्रति के रूप में के लिए के लिये केवल को गया गये छन्द जयशंकर प्रसाद जाता जीवन जो तक तथा तो था थी थे दर्शन दिया दो दोनों द्वारा द्विवेदी द्विवेदी युग धर्म नवीन नहीं नारी निराला ने पन्त पर पाश्चात्य पृ० प्रकृति प्रतीत प्रभाव प्रयोग प्रवृत्ति प्रसाद प्रिय प्रेम बहुत भारत भारत में भारतीय भारतेन्दु भाषा भी में भी यह युग रहस्यवादी रहा रोमांटिक वर्णन वह विकास विचार विषय वे श्रादि श्रीधर पाठक संस्कृति सब समय समस्त समाज सुमित्रानन्दन पन्त से हम हमें हिन्दी कविता हिन्दी काव्य हिन्दी साहित्य ही हुआ हुई हुए है और है कि हैं हो होता है होने