Hindī kāvya para Āṅgla prabhāvaPadmajā Prakāśana, 1954 - 301 σελίδες |
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Αποτελέσματα 1 - 3 από τα 94.
Σελίδα 9
... थे । वे अब युद्ध से तटस्थ रहने लगे थे और उनके दरबारों का । श्रब - वातावरण भी श्रति दूषित हो गया था । संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि ...
... थे । वे अब युद्ध से तटस्थ रहने लगे थे और उनके दरबारों का । श्रब - वातावरण भी श्रति दूषित हो गया था । संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि ...
Σελίδα 10
... थे मुग़ल साम्राज्य के कर्मचारी नैतिक रूप से इतने गिर चुके थे कि वे रिश्वत खुले श्राम लेते और जनता का शोषण करते थे । उत्तर मुग़लकाल ...
... थे मुग़ल साम्राज्य के कर्मचारी नैतिक रूप से इतने गिर चुके थे कि वे रिश्वत खुले श्राम लेते और जनता का शोषण करते थे । उत्तर मुग़लकाल ...
Σελίδα 12
... थे और कवियों तथा कलाकारों के सम्पर्क को अपने सांस्कृतिक विकास के लिये श्रावश्यक मानते थे । ऐसी स्थिति में वे बहुधा पांडित्वपूर्ण ...
... थे और कवियों तथा कलाकारों के सम्पर्क को अपने सांस्कृतिक विकास के लिये श्रावश्यक मानते थे । ऐसी स्थिति में वे बहुधा पांडित्वपूर्ण ...
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अंग्रेजी अतिरिक्त अथवा अधिक अनेक अपनी अपने इन इस इस प्रकार इसके इसी ईश्वर उनकी उनके उन्होंने उसकी उसके उसे एवं और कर करता करते हैं कवि कविता में कवियों का कारण कार्य काल काव्य की काव्य में किन्तु किया किया है किसी कुछ के प्रति के रूप में के लिए के लिये केवल को गया गये छन्द जयशंकर प्रसाद जाता जीवन जो तक तथा तो था थी थे दर्शन दिया दो दोनों द्वारा द्विवेदी द्विवेदी युग धर्म नवीन नहीं नारी निराला ने पन्त पर पाश्चात्य पृ० प्रकृति प्रतीत प्रभाव प्रयोग प्रवृत्ति प्रसाद प्रिय प्रेम बहुत भारत भारत में भारतीय भारतेन्दु भाषा भी में भी यह युग रहस्यवादी रहा रोमांटिक वर्णन वह विकास विचार विषय वे श्रादि श्रीधर पाठक संस्कृति सब समय समस्त समाज सुमित्रानन्दन पन्त से हम हमें हिन्दी कविता हिन्दी काव्य हिन्दी साहित्य ही हुआ हुई हुए है और है कि हैं हो होता है होने