Sumitrānandana Panta aura unakā Ādhunika kavi: Ālocanā evaṃ vyākhyā |
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अधिक अपनी अपने अब अलंकार आकाश आज आदि इस प्रकार इसी उस उसका उसके उसी प्रकार उसे एक एवं ऐसा कभी कर करता है करती करते करने कल्पना कवि का कवि ने कविता का काव्य किया है किसी की कुछ के कारण के प्रति के रूप में के लिए के समान के साथ केवल को कोमल गई गया है चित्रण छायावाद जब जल जाता है जाती जाते जिस प्रकार जीवन जीवन की जो तक तथा तुम तुम्हारे तो था थी थे दर्शन दिया दृष्टि दृष्टिकोण देती है दोनों नहीं नारी पन्त जी पर परन्तु परिवर्तन प्रकृति प्रस्तुत प्रेम बालिका भावना भी मधुर मन मानव मानो मेरे मैं यह यहाँ यही युग रहस्यवाद रहा है रही रहे वह विकास विश्व वे शब्द संसार समस्त सुन्दर से सौंदर्य स्नेह हम ही हुआ हुई हुए हृदय हे है और है कि हैं हो होकर होता है होती होते