Sumitrānandana Panta aura unakā Ādhunika kavi: Ālocanā evaṃ vyākhyāPrabhāta Prakāśana, 1960 - 248 σελίδες |
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Αποτελέσματα 1 - 3 από τα 39.
Σελίδα 184
... आकाश के हृदय में खेलते हैं । कभी हम मृग के समान आकाश में चौकड़ी भरते हैं और पृथिवी पर चरण भी नहीं धरते । कभी मस्त हाथी के समान झूमते ...
... आकाश के हृदय में खेलते हैं । कभी हम मृग के समान आकाश में चौकड़ी भरते हैं और पृथिवी पर चरण भी नहीं धरते । कभी मस्त हाथी के समान झूमते ...
Σελίδα 187
... आकाश की शाखाओं में मकड़ी के जाल के समान फैल जाते हैं और आकाश में उड़ते हुए पतंगे रूपी सूर्य को हम उसी क्षण अपने जाल में फँसा लेते ...
... आकाश की शाखाओं में मकड़ी के जाल के समान फैल जाते हैं और आकाश में उड़ते हुए पतंगे रूपी सूर्य को हम उसी क्षण अपने जाल में फँसा लेते ...
Σελίδα 196
... आकाश में आच्छादित भयंकर प्रलय की काली सघन घटाएँ जो आकाश को घुमाती सी दिखाई देती हैं वह तुम्हारे इन विषैले झागों से युक्त शक्तिशाली ...
... आकाश में आच्छादित भयंकर प्रलय की काली सघन घटाएँ जो आकाश को घुमाती सी दिखाई देती हैं वह तुम्हारे इन विषैले झागों से युक्त शक्तिशाली ...
Συχνά εμφανιζόμενοι όροι και φράσεις
अधिक अपनी अपने अब अलंकार आकाश आज आदि इस प्रकार इसी उस उसका उसके उसी प्रकार उसे एक एवं कभी कर करता है करती करते करने कल्पना कवि कवि ने कविता का काव्य किया है की कुछ के कारण के प्रति के रूप में के लिए के समान केवल को कोमल गंगा गई गया है चित्रण चेतना छन्द छायावाद जब जल जाता है जाती जाते जिस प्रकार जीवन की जो तथा तुम तुम्हारे तो था थी थे दर्शन दिया दृष्टि देती है दोनों नहीं नारी ने पन्त जी पर परन्तु परिवर्तन पल्लव पृथिवी प्रकृति प्रस्तुत प्रेम बालिका भावना भी मधुर मन मानव मानो मेरे मैं यह यहाँ युग रहस्यवाद रहा है रही रहे वर्षा ऋतु वह विकास विश्व वीणा वे शब्द श्लेष संसार समस्त सुन्दर से सौंदर्य स्नेह हम ही हुआ हुई हुए हृदय हे है और है कि हैं हो होकर होता है होती होते