Sumitrānandana Panta aura unakā Ādhunika kavi: Ālocanā evaṃ vyākhyāPrabhāta Prakāśana, 1960 - 248 σελίδες |
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Αποτελέσματα 1 - 3 από τα 69.
Σελίδα 21
... आदि का रहस्यवाद । ४. भक्ति और उपासना सम्बन्धी —सूर , तुलसी , मैथिलीशरण गुप्त आदि का रहस्यवाद । ५. प्रकृति सम्बन्धी - आधुनिक कवियों का ...
... आदि का रहस्यवाद । ४. भक्ति और उपासना सम्बन्धी —सूर , तुलसी , मैथिलीशरण गुप्त आदि का रहस्यवाद । ५. प्रकृति सम्बन्धी - आधुनिक कवियों का ...
Σελίδα 48
... आदि कविताओं में रूपों की विविधता की ओर कवि का अधिक ध्यान आकर्षित हुआ है । 1 गु ंजन ' गु'जन ' में कवि की कल्पना के साथ साथ विचारों का भी ...
... आदि कविताओं में रूपों की विविधता की ओर कवि का अधिक ध्यान आकर्षित हुआ है । 1 गु ंजन ' गु'जन ' में कवि की कल्पना के साथ साथ विचारों का भी ...
Σελίδα 49
... आदि को ) नश्वर मानता उसमें उसे शाश्वत शक्ति के दर्शन होते हैं । सभी ( जीव , प्रकृति चिरन्तन हैं । ' नौका विहार ' में इसी विचार का ...
... आदि को ) नश्वर मानता उसमें उसे शाश्वत शक्ति के दर्शन होते हैं । सभी ( जीव , प्रकृति चिरन्तन हैं । ' नौका विहार ' में इसी विचार का ...
Συχνά εμφανιζόμενοι όροι και φράσεις
अधिक अपनी अपने अब अलंकार आकाश आज आदि इस प्रकार इसी उस उसका उसके उसी प्रकार उसे एक एवं कभी कर करता है करती करते करने कल्पना कवि कवि ने कविता का काव्य किया है की कुछ के कारण के प्रति के रूप में के लिए के समान केवल को कोमल गंगा गई गया है चित्रण चेतना छन्द छायावाद जब जल जाता है जाती जाते जिस प्रकार जीवन की जो तथा तुम तुम्हारे तो था थी थे दर्शन दिया दृष्टि देती है दोनों नहीं नारी ने पन्त जी पर परन्तु परिवर्तन पल्लव पृथिवी प्रकृति प्रस्तुत प्रेम बालिका भावना भी मधुर मन मानव मानो मेरे मैं यह यहाँ युग रहस्यवाद रहा है रही रहे वर्षा ऋतु वह विकास विश्व वीणा वे शब्द श्लेष संसार समस्त सुन्दर से सौंदर्य स्नेह हम ही हुआ हुई हुए हृदय हे है और है कि हैं हो होकर होता है होती होते