Sumitrānandana Panta aura unakā Ādhunika kavi: Ālocanā evaṃ vyākhyāPrabhāta Prakāśana, 1960 - 248 σελίδες |
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Αποτελέσματα 1 - 3 από τα 64.
Σελίδα 161
... उसका मन हो । उस बालिका की अलौकिकता ही उसकी शोभा बढ़ाने वाले अलंकार थे । उसके सरल एवं भोले नेत्र कानों तक मिले हुए थे । उसका शरीर ...
... उसका मन हो । उस बालिका की अलौकिकता ही उसकी शोभा बढ़ाने वाले अलंकार थे । उसके सरल एवं भोले नेत्र कानों तक मिले हुए थे । उसका शरीर ...
Σελίδα 163
... उसके उस सरलपने से . ' था पाया ! कवि ने बालिका की उस सरलता से अपने हृदय को सुशोभित कर लिया ! अर्थात् कवि उसकी सरलता पर मुग्ध था । कवि ...
... उसके उस सरलपने से . ' था पाया ! कवि ने बालिका की उस सरलता से अपने हृदय को सुशोभित कर लिया ! अर्थात् कवि उसकी सरलता पर मुग्ध था । कवि ...
Σελίδα 217
... उसकी कोमल हथेलियाँ उसके चन्द्रमा रूपी मुख से प्रकाशित हो रही हैं । उसके हृदय पर लहरें कोमल बालों के समान हैं । ( गंगा के जल में ...
... उसकी कोमल हथेलियाँ उसके चन्द्रमा रूपी मुख से प्रकाशित हो रही हैं । उसके हृदय पर लहरें कोमल बालों के समान हैं । ( गंगा के जल में ...
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अधिक अपनी अपने अब अलंकार आकाश आज आदि इस प्रकार इसी उस उसका उसके उसी प्रकार उसे एक एवं कभी कर करता है करती करते करने कल्पना कवि कवि ने कविता का काव्य किया है की कुछ के कारण के प्रति के रूप में के लिए के समान केवल को कोमल गंगा गई गया है चित्रण चेतना छन्द छायावाद जब जल जाता है जाती जाते जिस प्रकार जीवन की जो तथा तुम तुम्हारे तो था थी थे दर्शन दिया दृष्टि देती है दोनों नहीं नारी ने पन्त जी पर परन्तु परिवर्तन पल्लव पृथिवी प्रकृति प्रस्तुत प्रेम बालिका भावना भी मधुर मन मानव मानो मेरे मैं यह यहाँ युग रहस्यवाद रहा है रही रहे वर्षा ऋतु वह विकास विश्व वीणा वे शब्द श्लेष संसार समस्त सुन्दर से सौंदर्य स्नेह हम ही हुआ हुई हुए हृदय हे है और है कि हैं हो होकर होता है होती होते