Sumitrānandana Panta aura unakā Ādhunika kavi: Ālocanā evaṃ vyākhyāPrabhāta Prakāśana, 1960 - 248 σελίδες |
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Αποτελέσματα 1 - 3 από τα 53.
Σελίδα 46
... उसे संसार की अनित्यता पर विश्वास दिलाया और वह उदासीन हो उठा । उसे ' सौरभ के मधुमास ' में ' शिशिर सूनी सांसें भरता ' रिखाई देने लगा ...
... उसे संसार की अनित्यता पर विश्वास दिलाया और वह उदासीन हो उठा । उसे ' सौरभ के मधुमास ' में ' शिशिर सूनी सांसें भरता ' रिखाई देने लगा ...
Σελίδα 160
... उसे वापस खींचने के लिए । इसी प्रकार स्नेह के अन्तर्गत यदि हम अपने प्रेमी को डाँट फटकार भी करते हैं तो उसके गुण के लाने के लिए ही हम उसे ...
... उसे वापस खींचने के लिए । इसी प्रकार स्नेह के अन्तर्गत यदि हम अपने प्रेमी को डाँट फटकार भी करते हैं तो उसके गुण के लाने के लिए ही हम उसे ...
Σελίδα 180
... उसे जलकी तरंगों से बचाकर अपने सौन्दर्य की तरंगों में डुबो रही हो ? प्रेम के काँटे से अचानक बिद्ध होकर जो पुष्प वृक्ष से अलग होकर ...
... उसे जलकी तरंगों से बचाकर अपने सौन्दर्य की तरंगों में डुबो रही हो ? प्रेम के काँटे से अचानक बिद्ध होकर जो पुष्प वृक्ष से अलग होकर ...
Συχνά εμφανιζόμενοι όροι και φράσεις
अधिक अपनी अपने अब अलंकार आकाश आज आदि इस प्रकार इसी उस उसका उसके उसी प्रकार उसे एक एवं कभी कर करता है करती करते करने कल्पना कवि कवि ने कविता का काव्य किया है की कुछ के कारण के प्रति के रूप में के लिए के समान केवल को कोमल गंगा गई गया है चित्रण चेतना छन्द छायावाद जब जल जाता है जाती जाते जिस प्रकार जीवन की जो तथा तुम तुम्हारे तो था थी थे दर्शन दिया दृष्टि देती है दोनों नहीं नारी ने पन्त जी पर परन्तु परिवर्तन पल्लव पृथिवी प्रकृति प्रस्तुत प्रेम बालिका भावना भी मधुर मन मानव मानो मेरे मैं यह यहाँ युग रहस्यवाद रहा है रही रहे वर्षा ऋतु वह विकास विश्व वीणा वे शब्द श्लेष संसार समस्त सुन्दर से सौंदर्य स्नेह हम ही हुआ हुई हुए हृदय हे है और है कि हैं हो होकर होता है होती होते