Sumitrānandana Panta aura unakā Ādhunika kavi: Ālocanā evaṃ vyākhyāPrabhāta Prakāśana, 1960 - 248 σελίδες |
Αναζήτηση στο βιβλίο
Αποτελέσματα 1 - 3 από τα 42.
Σελίδα 3
... किसी न किसी रूप में मानते हैं । डा ० नगेन्द्र का मत हैं कि " कोई प्राध्यात्मिक प्रेरणा छायावाद के मूल में है । " इसके अतिरिक्त अन्य ...
... किसी न किसी रूप में मानते हैं । डा ० नगेन्द्र का मत हैं कि " कोई प्राध्यात्मिक प्रेरणा छायावाद के मूल में है । " इसके अतिरिक्त अन्य ...
Σελίδα 159
... किसी व्यक्ति के प्रति स्नेह उसके गुणों के कारण होता है ! यदि हम किसी व्यक्ति की प्रसंशा भी करते हैं तो उसके मूल में यह स्नेह ही है ...
... किसी व्यक्ति के प्रति स्नेह उसके गुणों के कारण होता है ! यदि हम किसी व्यक्ति की प्रसंशा भी करते हैं तो उसके मूल में यह स्नेह ही है ...
Σελίδα 194
... किसी को सोने ' चुपचाप बयार । यदि किसी को आज ऐश्वर्य भी प्राप्त हो जाता है तो वह भी काल का ही ऋण है । काल ब्याज सहित ऋण को बसूल कर लेता ...
... किसी को सोने ' चुपचाप बयार । यदि किसी को आज ऐश्वर्य भी प्राप्त हो जाता है तो वह भी काल का ही ऋण है । काल ब्याज सहित ऋण को बसूल कर लेता ...
Συχνά εμφανιζόμενοι όροι και φράσεις
अधिक अपनी अपने अब अलंकार आकाश आज आदि इस प्रकार इसी उस उसका उसके उसी प्रकार उसे एक एवं कभी कर करता है करती करते करने कल्पना कवि कवि ने कविता का काव्य किया है की कुछ के कारण के प्रति के रूप में के लिए के समान केवल को कोमल गंगा गई गया है चित्रण चेतना छन्द छायावाद जब जल जाता है जाती जाते जिस प्रकार जीवन की जो तथा तुम तुम्हारे तो था थी थे दर्शन दिया दृष्टि देती है दोनों नहीं नारी ने पन्त जी पर परन्तु परिवर्तन पल्लव पृथिवी प्रकृति प्रस्तुत प्रेम बालिका भावना भी मधुर मन मानव मानो मेरे मैं यह यहाँ युग रहस्यवाद रहा है रही रहे वर्षा ऋतु वह विकास विश्व वीणा वे शब्द श्लेष संसार समस्त सुन्दर से सौंदर्य स्नेह हम ही हुआ हुई हुए हृदय हे है और है कि हैं हो होकर होता है होती होते