Sumitrānandana Panta aura unakā Ādhunika kavi: Ālocanā evaṃ vyākhyāPrabhāta Prakāśana, 1960 - 248 σελίδες |
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Αποτελέσματα 1 - 3 από τα 47.
Σελίδα 76
... कोमल रूप ही अधिक प्रिय है । कठोर रूप वर्णन में उनकी वृत्ति नहीं रमी । ' परिवर्तन ' कविता में प्रकृति का कठोर रूप दर्शनीय है । प्रसाद ...
... कोमल रूप ही अधिक प्रिय है । कठोर रूप वर्णन में उनकी वृत्ति नहीं रमी । ' परिवर्तन ' कविता में प्रकृति का कठोर रूप दर्शनीय है । प्रसाद ...
Σελίδα 145
... कोमल एवं अरुण किसलयदल के समान अधरों पर चन्द्र किरणों के द्वारा अमृत की बूंदों के मोहक एवं शान्ति देने वाले हैं । ऐसा ज्ञात होता है ...
... कोमल एवं अरुण किसलयदल के समान अधरों पर चन्द्र किरणों के द्वारा अमृत की बूंदों के मोहक एवं शान्ति देने वाले हैं । ऐसा ज्ञात होता है ...
Σελίδα 235
... कोमल तथा स्वाभाविक है ३ ९ . कंका में नीम वायु के स्पर्श से घने नीम के चंचल , पतले , लम्बे पत्ते , सर् - सर्भर भर् करते रेशम के से कोमल ...
... कोमल तथा स्वाभाविक है ३ ९ . कंका में नीम वायु के स्पर्श से घने नीम के चंचल , पतले , लम्बे पत्ते , सर् - सर्भर भर् करते रेशम के से कोमल ...
Συχνά εμφανιζόμενοι όροι και φράσεις
अधिक अपनी अपने अब अलंकार आकाश आज आदि इस प्रकार इसी उस उसका उसके उसी प्रकार उसे एक एवं कभी कर करता है करती करते करने कल्पना कवि कवि ने कविता का काव्य किया है की कुछ के कारण के प्रति के रूप में के लिए के समान केवल को कोमल गंगा गई गया है चित्रण चेतना छन्द छायावाद जब जल जाता है जाती जाते जिस प्रकार जीवन की जो तथा तुम तुम्हारे तो था थी थे दर्शन दिया दृष्टि देती है दोनों नहीं नारी ने पन्त जी पर परन्तु परिवर्तन पल्लव पृथिवी प्रकृति प्रस्तुत प्रेम बालिका भावना भी मधुर मन मानव मानो मेरे मैं यह यहाँ युग रहस्यवाद रहा है रही रहे वर्षा ऋतु वह विकास विश्व वीणा वे शब्द श्लेष संसार समस्त सुन्दर से सौंदर्य स्नेह हम ही हुआ हुई हुए हृदय हे है और है कि हैं हो होकर होता है होती होते