Sumitrānandana Panta aura unakā Ādhunika kavi: Ālocanā evaṃ vyākhyāPrabhāta Prakāśana, 1960 - 248 σελίδες |
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Αποτελέσματα 1 - 3 από τα 88.
Σελίδα 31
... को नहीं वरन् मनुष्य ने ईश्वर को पैदा किया है । मनुष्य प्राकृतिक । विकास की एक कड़ी है । इसके बाद मार्क्स ने मनुष्य को मात्र यन्त्र ...
... को नहीं वरन् मनुष्य ने ईश्वर को पैदा किया है । मनुष्य प्राकृतिक । विकास की एक कड़ी है । इसके बाद मार्क्स ने मनुष्य को मात्र यन्त्र ...
Σελίδα 82
... को ( उसकी इच्छा के विरुद्ध ) अपहरण कर ले जाता था । भक्तियुग में नारी को माया कहा गया । कृष्ण भक्त कवियों ने जरूर नारी को पूजनीय स्थान ...
... को ( उसकी इच्छा के विरुद्ध ) अपहरण कर ले जाता था । भक्तियुग में नारी को माया कहा गया । कृष्ण भक्त कवियों ने जरूर नारी को पूजनीय स्थान ...
Σελίδα 184
... को कोमल रोम- दार जड़ रूपी पंखों को फैलाकर उनकी जड़ता रूपी कीचड़ को दूर कर जीवन प्रदान करते हैं । त्रिभुवन की विराट कल्पना के समान हम ...
... को कोमल रोम- दार जड़ रूपी पंखों को फैलाकर उनकी जड़ता रूपी कीचड़ को दूर कर जीवन प्रदान करते हैं । त्रिभुवन की विराट कल्पना के समान हम ...
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अधिक अपनी अपने अब अलंकार आकाश आज आदि इस प्रकार इसी उस उसका उसके उसी प्रकार उसे एक एवं कभी कर करता है करती करते करने कल्पना कवि कवि ने कविता का काव्य किया है की कुछ के कारण के प्रति के रूप में के लिए के समान केवल को कोमल गंगा गई गया है चित्रण चेतना छन्द छायावाद जब जल जाता है जाती जाते जिस प्रकार जीवन की जो तथा तुम तुम्हारे तो था थी थे दर्शन दिया दृष्टि देती है दोनों नहीं नारी ने पन्त जी पर परन्तु परिवर्तन पल्लव पृथिवी प्रकृति प्रस्तुत प्रेम बालिका भावना भी मधुर मन मानव मानो मेरे मैं यह यहाँ युग रहस्यवाद रहा है रही रहे वर्षा ऋतु वह विकास विश्व वीणा वे शब्द श्लेष संसार समस्त सुन्दर से सौंदर्य स्नेह हम ही हुआ हुई हुए हृदय हे है और है कि हैं हो होकर होता है होती होते