Sumitrānandana Panta aura unakā Ādhunika kavi: Ālocanā evaṃ vyākhyāPrabhāta Prakāśana, 1960 - 248 σελίδες |
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Αποτελέσματα 1 - 3 από τα 39.
Σελίδα 146
... क्या वे नंगी भूमि पर नहीं चल सकते थे ? उनके लिए पथ में पाँवड़े क्यों बिछाए गए ? इतने दीपकों को जलाने की क्या आवश्यकता थी ? क्या उन्हें ...
... क्या वे नंगी भूमि पर नहीं चल सकते थे ? उनके लिए पथ में पाँवड़े क्यों बिछाए गए ? इतने दीपकों को जलाने की क्या आवश्यकता थी ? क्या उन्हें ...
Σελίδα 230
... क्या यही प्रेम की आराधना है कि हम मनुष्य का रक्त चूसकर केवल हड्डियों का कंकाल - मात्र बनादें ? क्या तुम्हारा प्रेम यही सिखाता है कि ...
... क्या यही प्रेम की आराधना है कि हम मनुष्य का रक्त चूसकर केवल हड्डियों का कंकाल - मात्र बनादें ? क्या तुम्हारा प्रेम यही सिखाता है कि ...
Σελίδα 233
... क्या इसी बालुका की दीवारों पर बना रहे हो ? क्या तुम्हारी यही क्षमता है कि पशु पक्षी और पुष्पों की समानता करो ? क्या मानवता पशुता के ...
... क्या इसी बालुका की दीवारों पर बना रहे हो ? क्या तुम्हारी यही क्षमता है कि पशु पक्षी और पुष्पों की समानता करो ? क्या मानवता पशुता के ...
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अधिक अपनी अपने अब अलंकार आकाश आज आदि इस प्रकार इसी उस उसका उसके उसी प्रकार उसे एक एवं कभी कर करता है करती करते करने कल्पना कवि कवि ने कविता का काव्य किया है की कुछ के कारण के प्रति के रूप में के लिए के समान केवल को कोमल गंगा गई गया है चित्रण चेतना छन्द छायावाद जब जल जाता है जाती जाते जिस प्रकार जीवन की जो तथा तुम तुम्हारे तो था थी थे दर्शन दिया दृष्टि देती है दोनों नहीं नारी ने पन्त जी पर परन्तु परिवर्तन पल्लव पृथिवी प्रकृति प्रस्तुत प्रेम बालिका भावना भी मधुर मन मानव मानो मेरे मैं यह यहाँ युग रहस्यवाद रहा है रही रहे वर्षा ऋतु वह विकास विश्व वीणा वे शब्द श्लेष संसार समस्त सुन्दर से सौंदर्य स्नेह हम ही हुआ हुई हुए हृदय हे है और है कि हैं हो होकर होता है होती होते