Sumitrānandana Panta aura unakā Ādhunika kavi: Ālocanā evaṃ vyākhyāPrabhāta Prakāśana, 1960 - 248 σελίδες |
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Αποτελέσματα 1 - 3 από τα 50.
Σελίδα 81
... गई । राम ने नारी के समस्त अधिकार छीन कर सीता को का विश्वास उठ गया ... गई । मध्य युग में आकर नारी पुरुष की भोग वस्तु बन गई । वासना अथवा ...
... गई । राम ने नारी के समस्त अधिकार छीन कर सीता को का विश्वास उठ गया ... गई । मध्य युग में आकर नारी पुरुष की भोग वस्तु बन गई । वासना अथवा ...
Σελίδα 101
... गई ! गौण ही नहीं , कवि कहता है प्रकृति हार गई । प्रकृति मानव की सृष्टि कर पूर्ण हो गई— हार गई तुम प्रकृति ! रच निरुपम मानव कृति ! निखिल ...
... गई ! गौण ही नहीं , कवि कहता है प्रकृति हार गई । प्रकृति मानव की सृष्टि कर पूर्ण हो गई— हार गई तुम प्रकृति ! रच निरुपम मानव कृति ! निखिल ...
Σελίδα 159
... गई त्रुटियाँ भी मधुर होती हैं । जिस प्रकार मुरली के छिद्रों से मधुर संगीत का सृजन होता है उसी प्रकार प्रेम में की गई त्रुटियों के ...
... गई त्रुटियाँ भी मधुर होती हैं । जिस प्रकार मुरली के छिद्रों से मधुर संगीत का सृजन होता है उसी प्रकार प्रेम में की गई त्रुटियों के ...
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अधिक अपनी अपने अब अलंकार आकाश आज आदि इस प्रकार इसी उस उसका उसके उसी प्रकार उसे एक एवं कभी कर करता है करती करते करने कल्पना कवि कवि ने कविता का काव्य किया है की कुछ के कारण के प्रति के रूप में के लिए के समान केवल को कोमल गंगा गई गया है चित्रण चेतना छन्द छायावाद जब जल जाता है जाती जाते जिस प्रकार जीवन की जो तथा तुम तुम्हारे तो था थी थे दर्शन दिया दृष्टि देती है दोनों नहीं नारी ने पन्त जी पर परन्तु परिवर्तन पल्लव पृथिवी प्रकृति प्रस्तुत प्रेम बालिका भावना भी मधुर मन मानव मानो मेरे मैं यह यहाँ युग रहस्यवाद रहा है रही रहे वर्षा ऋतु वह विकास विश्व वीणा वे शब्द श्लेष संसार समस्त सुन्दर से सौंदर्य स्नेह हम ही हुआ हुई हुए हृदय हे है और है कि हैं हो होकर होता है होती होते