Sumitrānandana Panta aura unakā Ādhunika kavi: Ālocanā evaṃ vyākhyāPrabhāta Prakāśana, 1960 - 248 σελίδες |
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Αποτελέσματα 1 - 3 από τα 85.
Σελίδα 154
... गया । ( १ ) सुरभि का मानवीकरण किया गया है । ( २ ) ' मधुबाल ' भौंरों के लिए प्रयोग किया गया है । यह कवि के गुणानुरूप नाम देने की प्रवृत्ति ...
... गया । ( १ ) सुरभि का मानवीकरण किया गया है । ( २ ) ' मधुबाल ' भौंरों के लिए प्रयोग किया गया है । यह कवि के गुणानुरूप नाम देने की प्रवृत्ति ...
Σελίδα 157
... जाता है । पारिवारिक स्नेह का भाव उसमें जाग्रत होता है । ) वृद्धावस्था का अन्तर्मुखी ज्ञान ही स्नेह है । ( प्राय : यह देखा गया है कि ...
... जाता है । पारिवारिक स्नेह का भाव उसमें जाग्रत होता है । ) वृद्धावस्था का अन्तर्मुखी ज्ञान ही स्नेह है । ( प्राय : यह देखा गया है कि ...
Σελίδα 213
... गया है । जिस मार्ग पर गायों के चलने से धूल उड़ा करती थी , सन्ध्या समय वे पथ धूलिहीन हो गए हैं । वह मार्ग धूल - धूसरित सर्प के समान ...
... गया है । जिस मार्ग पर गायों के चलने से धूल उड़ा करती थी , सन्ध्या समय वे पथ धूलिहीन हो गए हैं । वह मार्ग धूल - धूसरित सर्प के समान ...
Συχνά εμφανιζόμενοι όροι και φράσεις
अधिक अपनी अपने अब अलंकार आकाश आज आदि इस प्रकार इसी उस उसका उसके उसी प्रकार उसे एक एवं कभी कर करता है करती करते करने कल्पना कवि कवि ने कविता का काव्य किया है की कुछ के कारण के प्रति के रूप में के लिए के समान केवल को कोमल गंगा गई गया है चित्रण चेतना छन्द छायावाद जब जल जाता है जाती जाते जिस प्रकार जीवन की जो तथा तुम तुम्हारे तो था थी थे दर्शन दिया दृष्टि देती है दोनों नहीं नारी ने पन्त जी पर परन्तु परिवर्तन पल्लव पृथिवी प्रकृति प्रस्तुत प्रेम बालिका भावना भी मधुर मन मानव मानो मेरे मैं यह यहाँ युग रहस्यवाद रहा है रही रहे वर्षा ऋतु वह विकास विश्व वीणा वे शब्द श्लेष संसार समस्त सुन्दर से सौंदर्य स्नेह हम ही हुआ हुई हुए हृदय हे है और है कि हैं हो होकर होता है होती होते