Sumitrānandana Panta aura unakā Ādhunika kavi: Ālocanā evaṃ vyākhyāPrabhāta Prakāśana, 1960 - 248 σελίδες |
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Αποτελέσματα 1 - 3 από τα 35.
Σελίδα 181
... जाती है । दिन के तीव्र प्रकाश में चाँदनी का कोई महत्व नहीं रह जाता । दीन तथा निस्सहाय व्यक्ति को ही दिया गया दान प्रेम एवं श्रद्धा ...
... जाती है । दिन के तीव्र प्रकाश में चाँदनी का कोई महत्व नहीं रह जाता । दीन तथा निस्सहाय व्यक्ति को ही दिया गया दान प्रेम एवं श्रद्धा ...
Σελίδα 188
... जाती हैं उसी प्रकार हम आकाश रूपी बेलों पर छा जाते हैं । हम ताराों की गति हैं । हमारे चलने से तारे चलते दिखाई देते हैं । उनकी गति के ...
... जाती हैं उसी प्रकार हम आकाश रूपी बेलों पर छा जाते हैं । हम ताराों की गति हैं । हमारे चलने से तारे चलते दिखाई देते हैं । उनकी गति के ...
Σελίδα 245
... जाती है ? जीवन के इन युग के क्षणों को कहाँ ले जाती है ? कुछ पता नहीं । यह विशाल हिमालय से निकलकर किरणों से प्रकाशित लहरों में लीन रहती ...
... जाती है ? जीवन के इन युग के क्षणों को कहाँ ले जाती है ? कुछ पता नहीं । यह विशाल हिमालय से निकलकर किरणों से प्रकाशित लहरों में लीन रहती ...
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अधिक अपनी अपने अब अलंकार आकाश आज आदि इस प्रकार इसी उस उसका उसके उसी प्रकार उसे एक एवं कभी कर करता है करती करते करने कल्पना कवि कवि ने कविता का काव्य किया है की कुछ के कारण के प्रति के रूप में के लिए के समान केवल को कोमल गंगा गई गया है चित्रण चेतना छन्द छायावाद जब जल जाता है जाती जाते जिस प्रकार जीवन की जो तथा तुम तुम्हारे तो था थी थे दर्शन दिया दृष्टि देती है दोनों नहीं नारी ने पन्त जी पर परन्तु परिवर्तन पल्लव पृथिवी प्रकृति प्रस्तुत प्रेम बालिका भावना भी मधुर मन मानव मानो मेरे मैं यह यहाँ युग रहस्यवाद रहा है रही रहे वर्षा ऋतु वह विकास विश्व वीणा वे शब्द श्लेष संसार समस्त सुन्दर से सौंदर्य स्नेह हम ही हुआ हुई हुए हृदय हे है और है कि हैं हो होकर होता है होती होते