Sumitrānandana Panta aura unakā Ādhunika kavi: Ālocanā evaṃ vyākhyāPrabhāta Prakāśana, 1960 - 248 σελίδες |
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Αποτελέσματα 1 - 3 από τα 87.
Σελίδα 23
... तो यह बादल है । कुमुद कला है जहाँ किलकती वह नभ जैसा निर्मल है मैं वैसी ही उज्ज्वल हूँ मा काला तो यह बादल है । मेरा मानस तो शशि हासिनि ...
... तो यह बादल है । कुमुद कला है जहाँ किलकती वह नभ जैसा निर्मल है मैं वैसी ही उज्ज्वल हूँ मा काला तो यह बादल है । मेरा मानस तो शशि हासिनि ...
Σελίδα 144
... तो प्रकृति के संगीत से ही परिपूर्ण हैं । वहाँ तुम्हारे प्रिय स्वर के लिये अवकाश कहाँ ? ( १ ) इस छन्द की पंक्तियों में से संगीत स्वयं ...
... तो प्रकृति के संगीत से ही परिपूर्ण हैं । वहाँ तुम्हारे प्रिय स्वर के लिये अवकाश कहाँ ? ( १ ) इस छन्द की पंक्तियों में से संगीत स्वयं ...
Σελίδα 147
... तो केवल स्वामी जी का सत्कार करने के लिए ! वह तो जनता की अगाध भक्ति भावना के परिचायक हैं और जो दीपों की माला जलाई गई थी , वह इसलिए नहीं ...
... तो केवल स्वामी जी का सत्कार करने के लिए ! वह तो जनता की अगाध भक्ति भावना के परिचायक हैं और जो दीपों की माला जलाई गई थी , वह इसलिए नहीं ...
Συχνά εμφανιζόμενοι όροι και φράσεις
अधिक अपनी अपने अब अलंकार आकाश आज आदि इस प्रकार इसी उस उसका उसके उसी प्रकार उसे एक एवं कभी कर करता है करती करते करने कल्पना कवि कवि ने कविता का काव्य किया है की कुछ के कारण के प्रति के रूप में के लिए के समान केवल को कोमल गंगा गई गया है चित्रण चेतना छन्द छायावाद जब जल जाता है जाती जाते जिस प्रकार जीवन की जो तथा तुम तुम्हारे तो था थी थे दर्शन दिया दृष्टि देती है दोनों नहीं नारी ने पन्त जी पर परन्तु परिवर्तन पल्लव पृथिवी प्रकृति प्रस्तुत प्रेम बालिका भावना भी मधुर मन मानव मानो मेरे मैं यह यहाँ युग रहस्यवाद रहा है रही रहे वर्षा ऋतु वह विकास विश्व वीणा वे शब्द श्लेष संसार समस्त सुन्दर से सौंदर्य स्नेह हम ही हुआ हुई हुए हृदय हे है और है कि हैं हो होकर होता है होती होते