Sumitrānandana Panta aura unakā Ādhunika kavi: Ālocanā evaṃ vyākhyāPrabhāta Prakāśana, 1960 - 248 σελίδες |
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Αποτελέσματα 1 - 3 από τα 44.
Σελίδα 40
... दिया । कल्पना में उड़ने वाले कवि को धरती के नग्न , क्षुदित , तथा सुन्दरतम मानव के दर्शन कराए । प्राचीन रूढ़ियों , आदर्शो तथा सांमती ...
... दिया । कल्पना में उड़ने वाले कवि को धरती के नग्न , क्षुदित , तथा सुन्दरतम मानव के दर्शन कराए । प्राचीन रूढ़ियों , आदर्शो तथा सांमती ...
Σελίδα 82
... दिया । हिन्दी साहित्य के प्रत्येक युग को देखने से नारी की स्थिति का और भी स्पष्ट पता चलता है । वीरगाथा काल में नारी तलवार के जोर पर ...
... दिया । हिन्दी साहित्य के प्रत्येक युग को देखने से नारी की स्थिति का और भी स्पष्ट पता चलता है । वीरगाथा काल में नारी तलवार के जोर पर ...
Σελίδα 99
... दिया गया तो नारी पहले अर्थ की ओर ही ध्यान देगी । आर्थिक साधन अधिक ... दिया गया । पन्त जी ने भी व्यक्तिगत प्रेम को अधिक महत्व नहीं दिया ...
... दिया गया तो नारी पहले अर्थ की ओर ही ध्यान देगी । आर्थिक साधन अधिक ... दिया गया । पन्त जी ने भी व्यक्तिगत प्रेम को अधिक महत्व नहीं दिया ...
Συχνά εμφανιζόμενοι όροι και φράσεις
अधिक अपनी अपने अब अलंकार आकाश आज आदि इस प्रकार इसी उस उसका उसके उसी प्रकार उसे एक एवं कभी कर करता है करती करते करने कल्पना कवि कवि ने कविता का काव्य किया है की कुछ के कारण के प्रति के रूप में के लिए के समान केवल को कोमल गंगा गई गया है चित्रण चेतना छन्द छायावाद जब जल जाता है जाती जाते जिस प्रकार जीवन की जो तथा तुम तुम्हारे तो था थी थे दर्शन दिया दृष्टि देती है दोनों नहीं नारी ने पन्त जी पर परन्तु परिवर्तन पल्लव पृथिवी प्रकृति प्रस्तुत प्रेम बालिका भावना भी मधुर मन मानव मानो मेरे मैं यह यहाँ युग रहस्यवाद रहा है रही रहे वर्षा ऋतु वह विकास विश्व वीणा वे शब्द श्लेष संसार समस्त सुन्दर से सौंदर्य स्नेह हम ही हुआ हुई हुए हृदय हे है और है कि हैं हो होकर होता है होती होते