Sumitrānandana Panta aura unakā Ādhunika kavi: Ālocanā evaṃ vyākhyāPrabhāta Prakāśana, 1960 - 248 σελίδες |
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Αποτελέσματα 1 - 3 από τα 93.
Σελίδα 4
... नहीं गई है । उसमें आत्मानुभूति है आत्मा की अनुभूति नहीं । छायावाद के अनुभूति पक्ष की सीमा वहीं तक है जहाँ तक मन की गति है और ...
... नहीं गई है । उसमें आत्मानुभूति है आत्मा की अनुभूति नहीं । छायावाद के अनुभूति पक्ष की सीमा वहीं तक है जहाँ तक मन की गति है और ...
Σελίδα 28
... नहीं किया जा सकता । इस सिद्धांत के अनुसार कोई वस्तु । अज्ञेय नहीं । ' वस्तुएँ अज्ञात तो हैं अज्ञेय नहीं । इस प्रकार यह दर्शन आदर्श ...
... नहीं किया जा सकता । इस सिद्धांत के अनुसार कोई वस्तु । अज्ञेय नहीं । ' वस्तुएँ अज्ञात तो हैं अज्ञेय नहीं । इस प्रकार यह दर्शन आदर्श ...
Σελίδα 99
... नहीं दे सकती , जिसे देह दूँगी अब निश्चित , स्नेह नहीं दे सकती । ' जिसके पास कवि को स्नेह मिल गया और भावी पति को वह देह दे देगी । और ...
... नहीं दे सकती , जिसे देह दूँगी अब निश्चित , स्नेह नहीं दे सकती । ' जिसके पास कवि को स्नेह मिल गया और भावी पति को वह देह दे देगी । और ...
Συχνά εμφανιζόμενοι όροι και φράσεις
अधिक अपनी अपने अब अलंकार आकाश आज आदि इस प्रकार इसी उस उसका उसके उसी प्रकार उसे एक एवं कभी कर करता है करती करते करने कल्पना कवि कवि ने कविता का काव्य किया है की कुछ के कारण के प्रति के रूप में के लिए के समान केवल को कोमल गंगा गई गया है चित्रण चेतना छन्द छायावाद जब जल जाता है जाती जाते जिस प्रकार जीवन की जो तथा तुम तुम्हारे तो था थी थे दर्शन दिया दृष्टि देती है दोनों नहीं नारी ने पन्त जी पर परन्तु परिवर्तन पल्लव पृथिवी प्रकृति प्रस्तुत प्रेम बालिका भावना भी मधुर मन मानव मानो मेरे मैं यह यहाँ युग रहस्यवाद रहा है रही रहे वर्षा ऋतु वह विकास विश्व वीणा वे शब्द श्लेष संसार समस्त सुन्दर से सौंदर्य स्नेह हम ही हुआ हुई हुए हृदय हे है और है कि हैं हो होकर होता है होती होते