Sumitrānandana Panta aura unakā Ādhunika kavi: Ālocanā evaṃ vyākhyāPrabhāta Prakāśana, 1960 - 248 σελίδες |
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Αποτελέσματα 1 - 3 από τα 27.
Σελίδα 196
Ālocanā evaṃ vyākhyā Kundanalāla Upretī. १५. निष्ठुर परिवर्तन १. हे निष्ठुर परिवर्तन ' उत्थान पतन । कवि निष्ठुर परिवर्तन को साक्षात् सम्बोधन करते हुए ...
Ālocanā evaṃ vyākhyā Kundanalāla Upretī. १५. निष्ठुर परिवर्तन १. हे निष्ठुर परिवर्तन ' उत्थान पतन । कवि निष्ठुर परिवर्तन को साक्षात् सम्बोधन करते हुए ...
Σελίδα 200
... परिवर्तन कविता के साथ ही पन्त के काव्यालोक में भी आकस्मिक परिवर्तन होता है । ' जीवन की वास्तविकता के प्रति , ऐहिक विपत्तियों की ...
... परिवर्तन कविता के साथ ही पन्त के काव्यालोक में भी आकस्मिक परिवर्तन होता है । ' जीवन की वास्तविकता के प्रति , ऐहिक विपत्तियों की ...
Σελίδα 201
... परिवर्तन में भिन्न - भिन्न वर्णों के चित्र हैं । कहीं शृंगार का अरुण राग है तो कहीं वीभत्स का नीला रंग । ' - डा ० नगेन्द्र ( २ ) ' परिवर्तन ...
... परिवर्तन में भिन्न - भिन्न वर्णों के चित्र हैं । कहीं शृंगार का अरुण राग है तो कहीं वीभत्स का नीला रंग । ' - डा ० नगेन्द्र ( २ ) ' परिवर्तन ...
Συχνά εμφανιζόμενοι όροι και φράσεις
अधिक अपनी अपने अब अलंकार आकाश आज आदि इस प्रकार इसी उस उसका उसके उसी प्रकार उसे एक एवं कभी कर करता है करती करते करने कल्पना कवि कवि ने कविता का काव्य किया है की कुछ के कारण के प्रति के रूप में के लिए के समान केवल को कोमल गंगा गई गया है चित्रण चेतना छन्द छायावाद जब जल जाता है जाती जाते जिस प्रकार जीवन की जो तथा तुम तुम्हारे तो था थी थे दर्शन दिया दृष्टि देती है दोनों नहीं नारी ने पन्त जी पर परन्तु परिवर्तन पल्लव पृथिवी प्रकृति प्रस्तुत प्रेम बालिका भावना भी मधुर मन मानव मानो मेरे मैं यह यहाँ युग रहस्यवाद रहा है रही रहे वर्षा ऋतु वह विकास विश्व वीणा वे शब्द श्लेष संसार समस्त सुन्दर से सौंदर्य स्नेह हम ही हुआ हुई हुए हृदय हे है और है कि हैं हो होकर होता है होती होते