Sumitrānandana Panta aura unakā Ādhunika kavi: Ālocanā evaṃ vyākhyāPrabhāta Prakāśana, 1960 - 248 σελίδες |
Αναζήτηση στο βιβλίο
Αποτελέσματα 1 - 3 από τα 88.
Σελίδα 174
... पर विचरण करते हुए बाँसुरी बजाता था तो मेमने आनन्द के साथ पर्वत पर कुदकते फिरते थे उसी प्रकार जब पर्वत पर वायु बाँसों की झाँड़ियों ...
... पर विचरण करते हुए बाँसुरी बजाता था तो मेमने आनन्द के साथ पर्वत पर कुदकते फिरते थे उसी प्रकार जब पर्वत पर वायु बाँसों की झाँड़ियों ...
Σελίδα 177
... पर इस चन्द्रमुखी बालिका के दर्शन करता है । यहीं से इस कविता में कथा प्रारम्भ होती है । १. इन्दु पर उस इन्दु - मुख पर के काव्य में । जब ...
... पर इस चन्द्रमुखी बालिका के दर्शन करता है । यहीं से इस कविता में कथा प्रारम्भ होती है । १. इन्दु पर उस इन्दु - मुख पर के काव्य में । जब ...
Σελίδα 245
... पर मोती सी प्रोस पड़ी है । प्रातः के कुहरे के रूप में आकाश पृथिवी पर उतर आया है । सारी वस्तुएँ स्वच्छ होती जा रही है । गंगा के किनारे ...
... पर मोती सी प्रोस पड़ी है । प्रातः के कुहरे के रूप में आकाश पृथिवी पर उतर आया है । सारी वस्तुएँ स्वच्छ होती जा रही है । गंगा के किनारे ...
Συχνά εμφανιζόμενοι όροι και φράσεις
अधिक अपनी अपने अब अलंकार आकाश आज आदि इस प्रकार इसी उस उसका उसके उसी प्रकार उसे एक एवं कभी कर करता है करती करते करने कल्पना कवि कवि ने कविता का काव्य किया है की कुछ के कारण के प्रति के रूप में के लिए के समान केवल को कोमल गंगा गई गया है चित्रण चेतना छन्द छायावाद जब जल जाता है जाती जाते जिस प्रकार जीवन की जो तथा तुम तुम्हारे तो था थी थे दर्शन दिया दृष्टि देती है दोनों नहीं नारी ने पन्त जी पर परन्तु परिवर्तन पल्लव पृथिवी प्रकृति प्रस्तुत प्रेम बालिका भावना भी मधुर मन मानव मानो मेरे मैं यह यहाँ युग रहस्यवाद रहा है रही रहे वर्षा ऋतु वह विकास विश्व वीणा वे शब्द श्लेष संसार समस्त सुन्दर से सौंदर्य स्नेह हम ही हुआ हुई हुए हृदय हे है और है कि हैं हो होकर होता है होती होते