Sumitrānandana Panta aura unakā Ādhunika kavi: Ālocanā evaṃ vyākhyāPrabhāta Prakāśana, 1960 - 248 σελίδες |
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Αποτελέσματα 1 - 3 από τα 43.
Σελίδα 146
... हे मा ! जब राजर्षि विवेकानन्द अल्मोड़े में पधारे थे , तब उनके मार्ग में मखमल बिछवाया गया था । अनेक दीपकों को जला कर निरंतर प्रकाश ...
... हे मा ! जब राजर्षि विवेकानन्द अल्मोड़े में पधारे थे , तब उनके मार्ग में मखमल बिछवाया गया था । अनेक दीपकों को जला कर निरंतर प्रकाश ...
Σελίδα 196
... हे परिवर्तन ! तुम्हारा भयंकर ताण्डव नृत्य ही संसार का करुण परिवर्तन है । तुम्हारा नेत्रों का खोलना और बन्द करना ही विश्व का सृजन और ...
... हे परिवर्तन ! तुम्हारा भयंकर ताण्डव नृत्य ही संसार का करुण परिवर्तन है । तुम्हारा नेत्रों का खोलना और बन्द करना ही विश्व का सृजन और ...
Σελίδα 211
... हे वियोगी मन ! संसार की पीड़ा में तू तपा कर ! अपने उज्ज्वल एवं पवित्र स्वर्ण से तू जीवन की कर । विश्व में अपनत्व की भावना का निर्माण ...
... हे वियोगी मन ! संसार की पीड़ा में तू तपा कर ! अपने उज्ज्वल एवं पवित्र स्वर्ण से तू जीवन की कर । विश्व में अपनत्व की भावना का निर्माण ...
Συχνά εμφανιζόμενοι όροι και φράσεις
अधिक अपनी अपने अब अलंकार आकाश आज आदि इस प्रकार इसी उस उसका उसके उसी प्रकार उसे एक एवं कभी कर करता है करती करते करने कल्पना कवि कवि ने कविता का काव्य किया है की कुछ के कारण के प्रति के रूप में के लिए के समान केवल को कोमल गंगा गई गया है चित्रण चेतना छन्द छायावाद जब जल जाता है जाती जाते जिस प्रकार जीवन की जो तथा तुम तुम्हारे तो था थी थे दर्शन दिया दृष्टि देती है दोनों नहीं नारी ने पन्त जी पर परन्तु परिवर्तन पल्लव पृथिवी प्रकृति प्रस्तुत प्रेम बालिका भावना भी मधुर मन मानव मानो मेरे मैं यह यहाँ युग रहस्यवाद रहा है रही रहे वर्षा ऋतु वह विकास विश्व वीणा वे शब्द श्लेष संसार समस्त सुन्दर से सौंदर्य स्नेह हम ही हुआ हुई हुए हृदय हे है और है कि हैं हो होकर होता है होती होते