Sumitrānandana Panta aura unakā Ādhunika kavi: Ālocanā evaṃ vyākhyāPrabhāta Prakāśana, 1960 - 248 σελίδες |
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Αποτελέσματα 1 - 3 από τα 81.
Σελίδα 161
... हो । ( अर्थात् उसके अधरों पर मुस्कान सदैव रहती है । ) अथवा ऐसा मालूम पड़ता है मानों उस बालिका ने उस मुस्कान को पीलिया हो । ( जिस ...
... हो । ( अर्थात् उसके अधरों पर मुस्कान सदैव रहती है । ) अथवा ऐसा मालूम पड़ता है मानों उस बालिका ने उस मुस्कान को पीलिया हो । ( जिस ...
Σελίδα 209
... हो जाती हैं । ( जिस प्रकार असंख्य जीवात्माएँ ब्रह्म से उत्पन्न होकर फिर उसीमें लीन हो जाती हैं । ( १ ) लहरों का मानवीकरण है । ( २ ) ...
... हो जाती हैं । ( जिस प्रकार असंख्य जीवात्माएँ ब्रह्म से उत्पन्न होकर फिर उसीमें लीन हो जाती हैं । ( १ ) लहरों का मानवीकरण है । ( २ ) ...
Σελίδα 223
... हो जाती है । ) यहाँ कवि ने अद्वैत भावना का प्रतिपादन किया है । चाँदनी ब्रह्म के समान है । क्योंकि उसके अस्तित्व से ही संसार का ...
... हो जाती है । ) यहाँ कवि ने अद्वैत भावना का प्रतिपादन किया है । चाँदनी ब्रह्म के समान है । क्योंकि उसके अस्तित्व से ही संसार का ...
Συχνά εμφανιζόμενοι όροι και φράσεις
अधिक अपनी अपने अब अलंकार आकाश आज आदि इस प्रकार इसी उस उसका उसके उसी प्रकार उसे एक एवं कभी कर करता है करती करते करने कल्पना कवि कवि ने कविता का काव्य किया है की कुछ के कारण के प्रति के रूप में के लिए के समान केवल को कोमल गंगा गई गया है चित्रण चेतना छन्द छायावाद जब जल जाता है जाती जाते जिस प्रकार जीवन की जो तथा तुम तुम्हारे तो था थी थे दर्शन दिया दृष्टि देती है दोनों नहीं नारी ने पन्त जी पर परन्तु परिवर्तन पल्लव पृथिवी प्रकृति प्रस्तुत प्रेम बालिका भावना भी मधुर मन मानव मानो मेरे मैं यह यहाँ युग रहस्यवाद रहा है रही रहे वर्षा ऋतु वह विकास विश्व वीणा वे शब्द श्लेष संसार समस्त सुन्दर से सौंदर्य स्नेह हम ही हुआ हुई हुए हृदय हे है और है कि हैं हो होकर होता है होती होते